उध्दव बड़े गर्व के साथ गोकुल जाते हैं और गोपियों के सम्मुख उपस्थित होकर उन्हें उपदेश देते हैं। गोपियाँ विरह की अगि् में जल रही थीं। उध्दव ने आकर उस अगि् को अपने उपदेशों का घृत डालकर और अधिक बढ़ा दिया। वह गोपियों के लिए श्रीकृष्ण की एक पाती भी लाये थे।
वे क्या जानते थे कि गोपियां उस पाती के साथ ऐसा खिलवाड़ करेंगी-
निरखत अंक स्याम सुन्दर के। बार बार लावति छाती।
लोचन-जल कागद मसि मिलिकैह्वै गई स्याम स्याम की पाती॥
फिर उन्होंने अपने और ज्ञान के उपदेशों का उत्तर भी सुना-लरिकाई को प्रेम कहौ अलि कैसे छूटत?
उनकी ऑंखें श्रीकृष्ण के दर्शन के बिना अन्य किसी भी प्रकार से तृप्त नहीं हो सकतीं। वे कहती हैं-
उनकी ऑंखें श्रीकृष्ण के दर्शन के बिना अन्य किसी भी प्रकार से तृप्त नहीं हो सकतीं। वे कहती हैं-
अंखियाँ हरि दरसन की भूखी।
कैसे रहें रुप रस राँची ये बतियाँ मुनि रूखी॥
उनकी विरह-वेदना समस्त वातावरण में व्याप्त हो गई है। ब्रज के जड़ चेतन सभी उन्हें कृष्ण-विरह में जलते दिखाई देते हैं। वे कहती है--
देखियत कालिन्दी अति कारी।
कहियो पथिक! जाय हरि सो, ज्यों भई बिरह-जुर-जारीii
भ्रमर गीत में सूरदास ने उन पदों को समाहित किया है जिनमें मथुरा से कृष्ण द्वारा उद्धव को ब्रज संदेस लेकर भेजा जाता है और उद्धव जो हैं योग और ब्रह्म के ज्ञाता हैं उनका प्रेम से दूर दूर का कोई सरोकार नहीं है।
ऊधौ मन ना भये दस-बीस,
एक हुतो सो गयौ स्याम संग, कौ आराधे ईस॥
एक हुतो सो गयौ स्याम संग, कौ आराधे ईस॥
सूर हमारै नंद-नंदन बिनु, और नहीं जगदीस॥॥
तभी एक भ्रमर वहाँ आता है तो बस जली-भुनी गोपियों को मौका मिल जाता है और वह उद्धव पर काला भ्रमर कह कर खूब कटाक्ष करती हैं:--
रहु रे मधुकर मधु मतवारे।
कौन काज या निरगुन सौं, चिरजीवहू कान्ह हमारे।। -
लोटत पीत पराग कीच में, बीच न अंग सम्हारै। I
हे उद्धव ये तुम्हारी जोग की ठगविद्या, यहाँ ब्रज में नहीं बिकने की। भला मूली के पत्तों के बदले माणक मोती तुम्हें कौन देगा? यह तुम्हारा व्यापार ऐसे ही धरा रह जाएगा। जहाँ से ये जोग की विद्या लाए हो उन्हें ही वापस सिखा दो, यह उन्हीं के लिये उिचत है। यहाँ तो कोई ऐसा बेवकूफ नहीं कि किशमिश छोड़ कर कड़वी निंबौली खाए!
जोग ठगौरी ब्रज न बिकैहे।
मूरि के पातिन के बदलै, कौ मुक्ताहल देहै।।
यह ब्यौपार तुम्हारो उधौ, ऐसे ही धरयौ रेहै।
जिन पें तैं लै आए उधौ, तिनहीं के पेट समैंहै।।
दाख छांिड के कटुक निम्बौरी, कौ अपने मुख देहै।
गुन किर मोहि सूर साँवरे, कौ निरगुन निरवेहै॥॥
bhagvan krishn ki stuti ke liye shabd kahaa milate hai
ReplyDeletebhakar ki kirano ke bin nav pankaj kahaa khilate hai
vishnu bhagvan ki leelaaye hai anaadi aur anant
nishachak prem ke marg par to prabhu sahaj hi milate hai
Ati sundar...
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